'नरेंद्र मोदी और कार्यकर्ता निर्माण' संगठन की असली ताकत: बी एल संतोष, बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव

Narendra Modi and Karyakarta Nirmaan' is the real strength of the Sangthan
''संगठन की शक्ति वहीं खिलती है, जहाँ कार्यकर्ता तपस्वी बनकर खड़े होते हैं।'' यही दर्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीवन यात्रा और उनके सामाजिक-संगठनिक दृष्टिकोण का मूल मंत्र रहा है। नरेंद्र मोदी ने हमेशा कार्यकर्ताओं को संगठन का हृदय माना और उन्हें तैयार करना, प्रशिक्षित करना और सशक्त बनाना अपने प्राथमिक कार्यों में रखा। उनका मानना था कि संगठन केवल ढाँचा नहीं है, बल्कि उस ढांचे में कार्यकर्ताओं की क्षमता, अनुशासन और समर्पण ही असली ताकत हैं।
नरेंद्र मोदी 1977 में आपातकाल के बाद, जब संघ में विभाग प्रचारक के रूप में एक कुशल संगठनकर्ता बनकर उभरे, तब उनकी कार्यशैली का मुख्य आधार कार्यकर्ता निर्माण रहा। 1980 के दशक में गुजरात में संगठन का विस्तार बहुत सीमित था। उस समय किसी एक तालुका में शाखा स्थापित करना भी बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी। लेकिन युवा नरेंद्र मोदी की दृष्टि अलग थी।
उनका मानना था कि हर गाँव में शाखा होनी चाहिए। इसके लिए वह हर शाखा की जिम्मेदारी एक कार्यकर्ता को देते और समय-समय पर उसकी प्रगति की जानकारी लेते। कौन मुख्य शिक्षक है, क्या गतिविधियाँ हुईं, कौन शाखा में अनुपस्थित रहा और क्यों—इन सब विवरणों पर बारीकी से ध्यान रखा जाता।
संघ के 60 वर्ष पूरे होने पर 1985 में कर्णावती (अहमदाबाद) में एक विशाल शिविर का आयोजन हुआ। शिविर में लगभग 5000 कार्यकर्ताओं की उपस्थिति रही। शिविर की पूर्व तैयारी में मोदी गाँव-गाँव जाकर युवाओं से संपर्क करते और उन्हें गणवेश खरीदने हेत प्रेरित करते। परिणामस्वरूप, सैकड़ों नए युवा न केवल शिविर में पहुँचे बल्कि संगठन से स्थायी रूप से जुड़ भी गए। इसने गुजरात संघ में एक नई ऊर्जा डालने का काम किया, और बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं के निर्माण की भी शुरुआत हुई।
मोदी कार्यकर्ताओं को योजनाबद्ध और व्यवस्थित रूप से काम करना सिखाते थे। उदाहरण के लिए, 1980 के दशक की शुरुआत में राजकोट के पी.डी. मालवीय कॉलेज में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग में भाग लेने वाले कार्यकर्ता अभी भी याद करते हैं कि उन्होंने स्थानीय लोगों से सर्वे कर संगठन की छवि समझने और परिणामों को सांख्यिकीय विधियों के माध्यम से प्रस्तुत करने का नया प्रयोग कराया। यह केवल सीख ही नहीं, बल्कि संगठन को मज़बूत बनाने के लिए आधुनिक तरीकों और योजनाबद्ध सोच का संदेश भी था।
नरेंद्र मोदी कार्यकर्ताओं को आचरण और शिष्टाचार के व्यावहारिक उदाहरणों से प्रेरित करते थे। छोटी आदतें, जैसे सुव्यवस्थित रहना, दरवाज़ा खटखटाकर प्रवेश करना, घरवालों का आत्मीयता से कुशल-क्षेम पूछना — यह सब उन्हें जिम्मेदार और सम्मानित कार्यकर्ता बनाते थे। उनके प्रशिक्षण से कार्यकर्ता न केवल संगठन के सदस्य बने, बल्कि समाज में आदर्श प्रतिनिधि भी बने। मोदी कठिन परिस्थितियों एवं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के समय कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों को व्यक्तिगत नैतिक सहयोग दिया करते थे, जिसे अनेक कार्यकर्ता आज भी कृतज्ञता के साथ याद करते हैं।
1987 में भाजपा गुजरात के संगठन मंत्री बनकर उन्होंने यही कार्यकर्ता निर्माण राजनीतिक क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के लिए भी करने शुरू किया। 1980 के दशक में गुजरात भाजपा के संगठन पर्व के माध्यम से हजारों नए कार्यकर्ता संगठन से जुड़े। अनुशासन और जवाबदेही मोदी की कार्यशैली का मूल था। उन्होंने कार्यकर्ताओं को सबक दिया कि अनुशासन, समर्पण और जवाबदेही संगठन की मजबूती की नींव हैं। वे खुद बैठकों में एक मिनट भी देर नहीं करते थे, और अगर कोई देर से आता, तो उन्हें बाहर रहकर बैठक में भाग लेने को कहते थे।
मोदी ने संगठन में सामाजिक संतुलन और चुनावी रणनीति दोनों में नई दिशा दी। पदाधिकारियों के चयन में सामाजिक संतुलन सुनिश्चित की और 1987 के अहमदाबाद नगर निगम चुनावों में “बूथ जीतो” रणनीति से कार्यकर्ताओं को जमीनी स्तर पर सक्रिय और लक्ष्य केंद्रित बनाया। साथ ही, मोदी व्यक्तिगत आचरण के माध्यम से कार्यकर्ताओं को आत्मविश्वास और क्षमता बढ़ाते थे।
पहली बार पार्टी में शामिल हुए कार्यकर्ता को उन्होंने भरोसा दिलाया और बूथ संगठन, सदस्यता विवरण और सामूहिकता के महत्व की व्याख्या विस्तार से करते थे। परिणामस्वरूप, केवल कुछ महीनों में लाखों नए सदस्य जुड़े और मजबूत कार्यकर्ता खड़े हुए।। भाजपा संगठन मंत्री रहते हुए उन्होंने “टिफ़िन बैठक” जैसी पहल से कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों को संगठन से भावनात्मक रूप से जोड़ा।
संगठन निर्माण में मोदी केवल ढाँचे और रणनीति तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने कार्यकर्ताओं को संवेदनशील और दूरदर्शी नेतृत्वकर्ता बनने की शिक्षा दी। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को कनिष्ठों के साथ सहयोग और जिम्मेदारी निभाने का संदेश दिया। आलोचना पर संतुलित प्रतिक्रिया और प्रशंसा पर संयम, ये सब मोदी की कार्यकर्ता-निर्माण की मूल रणनीति का हिस्सा थे।
नरेंद्र मोदी का दृष्टिकोण स्पष्ट था कि संगठन की असली ताकत कार्यकर्ताओं में है। अनुशासन, समर्पण और सेवा की भावना से भरे ऐसे कार्यकर्ता किसी भी परिस्थिति में राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हैं। यही कारण है कि आज संगठन केवल राजनीतिक शक्ति नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक चेतना बन चुका है। मोदी की कार्यकर्ता-निर्माण की यात्रा आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संदेश देती है कि यदि जड़ों को सींचा जाए, तो शाखाएँ अपने आप फलती-फूलती हैं और वृक्ष युगों तक अडिग खड़ा रहता है।
नोट- इस लेख के लेखक भारतीय जानता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी एल संतोष के ये निजी विचार हैं।